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कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा गाजर घास जागरूकता सप्ताह का आयोजन

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कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा गाजर घास जागरूकता सप्ताह का आयोजन

लोक सेवा न्यूज़ 24 संपादक – दिग्वेंद्र गुप्ता

कवर्धा, 22 अगस्त 2024। जिले में कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा 16 से 22 अगस्त तक गाजरघास जागरूकता सप्ताह मनाया गया। जिले के विभिन्न ग्रामों जैसे नेवारी, सारंगपुर, भेदली, कुटकीपारा, थुहाडीह, बोड़ला आदि गांवों के स्कूल प्रांगण एवं कृषक प्रक्षेत्र में गाजरघास उन्मूलन के लिए जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके अंतर्गत वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, डॉ. बी.पी. त्रिपाठी द्वारा कृषकों एवं कृषि अधिकारियों को गाजरघास से होने वाले क्षति एवं उसके बचाव के लिए जानकारी दी। उन्होने बताया कि गाजारघास से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग, एक्जिमा,एलर्जी, बुखार, दमा जैसी घातक बीमारियां होती है और साथ ही यह खरपतवार जैव विविधिता के लिए खतरा बनती जा रही है। इसके कारण फसलां की उत्पादकता कम हो जाती है। इसे देश के विभिन्न भागां मे अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हमारे देश में यह खरपतवार सन् 1955 में दिखाई दिया था धीरे-धीरे यह 35 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैल चुका है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री त्रिपाठी ने बताया कि यह मुख्यतः खाली स्थानों, अनुपयोगी भूमियां, औद्योगिक क्षेत्रों, बगीचों, पार्कां, स्कूलां, रहवासी क्षेत्रों सड़को तथा रेल्वे लाइन के किनारो पर बहुतायत मात्रा में पाया जाता है। यह खरपतवार वर्ष भर विभिन्न अवस्थाओं में पाया जाता है तथा 3-4 माह में अपना जीवन चक्र पूरा कर लेता है। गाजरघास को नियंत्रित करने के लिए फूल आने से पूर्व उखाड़ देना चाहिए एवं इसे इकठ्ठा कर कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट में खाद बनाने के लिए उपयोग किया जाना चाहिए। घर के आस-पास क्षेत्रों में इसके बढ़वार के रोकने के लिए गेंदे अथवा तुलसी के पौधों को लगाकर इसके फैलाव को कम कर सकते है। अक्टूबर एवं नवंबर माह में चरोटा के बीज एकत्र कर उन्हें फरवरी-मार्च माह में छिड़क देना चाहिए, यह गाजरघास की वानस्पतिक वृद्धि को रोकने में मदद करता है। गाजरघास से कम्पोस्ट बनाएं, एक साथ दो लाभ कमायें जैसे सघन कृषि प्रणाली के चलते रसायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग करने से मानव स्वास्थ एवं पर्यावरण पर होने वाले घातक परिणाम किसी से छिपे नही है।
वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री त्रिपाठी ने बताया कि भूमि की उर्वरा शक्ति में लगातार गिरावट आती जा रही है। रसायनिक खादों द्वारा पर्यावरण एवं मानव पर होने वाले दुष्प्रभावों को देखत हुये जैविक खादों का महत्व बढ़ रहा है। गाजरघास से जैविक खाद बनाकर हम पर्यावरण सुरक्षा करते हुए धनोपार्जन भी कर सकते है। निंदाई कर हम जहां एक तरफ खेतों से गाजरघास एवं अन्य खरपतवारों को निकालकर फसल की सुरक्षा करते हैं, वही इन उखाड़ी हुई खरपतवारों से वैज्ञानिक विधि अपनाकर अच्छी जैविक खाद प्राप्त कर सकते है, जिसे फसलों में डालकर पैदावार बढ़ाई जा सकती है। कार्यक्रम में विषय वस्तु विशेषज्ञ, सस्य विज्ञान श्री बी.एस. परिहार, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि अभियांत्रिकी, इंजी. टी. एस. सोनवानी, विषय वस्तु विशेषज्ञ, उद्यानिकी डॉ. एन. सी. बंजारा एवं बड़ी संख्या मे कृषक तथा छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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